Here is an essay on ‘Biological Diversity’ for class 8, 9, 10, 11 and 12. Find paragraphs, long and short essays on ‘Biological Diversity’ especially written for school and college students.
पृथ्वी पर जिन सजीवों का अस्तित्व है, उनमें पाई जानेवाली विविधता को ‘जैविक विविधता’ अथवा ‘जैव विविधता’ कहते हैं । पृथ्वी के पृष्ठभाग पर पाए जानेवाले सजीवों में वनस्पतियों तथा प्राणियों दोनों की हजारों प्रजातियों का समावेश है । उनके आकार, आकृति, अवयव आदि में पर्याप्त विविधता पाई जाती हे ।
सूक्ष्मजीवों के साथ-साथ एककोशिकीय प्राणियों तथा वनस्पतियों और हाथी, तिमिगल (हवेल) जैसे महाकाय प्राणियों तथा महाकाय वृक्षों और लताओं आदि में कई प्रकार की विविधता दिखाई देती है ।
भोजन ग्रहण करने की आदत के आधार पर भी सजीवों में अत्यधिक अनुपात में विविधता पाई जाती है । इन समस्त प्राणियों तथा वनस्पतियों के परितंत्र, प्रजातियों तथा गुणसूत्रों को एक पीढ़ी से अगली पीढ़ी तक संक्रमित करने का कार्य करनेवाले घटकों में भी पर्याप्त विविधता दिखाई देती है ।
एक ही वर्ग के सजीवों की शारीरिक रचना, जीवनयापन की पद्धति और निवास के स्थानों में भी विविधता होती है ।
मछलियों की कुछ जातियाँ मीठे पानी में रहती हैं, जबकि कुछ जातियाँ खारे पानी में रहती हैं । कुछ मछलियाँ आकार में अत्यंत छोटी तो कुछ आकार में महाकाय होती हैं । कुछ मछलियाँ की पूंछें केवल दिशा परिवर्तन में उपयोगी होती हैं, तो कुछ मछलियों की पूंछें संरक्षक यंत्रावली की तरह काम करती है ।
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कुछ मछलियों की आयु बहुत कम होती है, जबकि कुछ मछलियाँ दीर्घायु होती है । तात्पर्य यह है कि एक ही वर्ग के होने पर भी सजीवों की शारीरिक रचना, निवास के स्थान तथा जीवनयापन की पद्धति में विविधता दिखाई देती है । जैविक विविधता में पर्यावरण नामक घटक की महत्वपूर्ण भूमिका होती है ।
स्थान और समय के अनुरूप प्रत्येक जगह के पर्यावरण में निरंतर परिवर्तन होता रहता है । इसके कारण एक ही पर्यावरण में रहनेवाले सजीवों में विविधता पाई जाती है । पानी में रहनेवाले सजीव चाहे वे झील, नदी, तालाब, समुद्र आदि में कहीं भी है, उनमें उच्च अनुपात में विविधता दिखाई देती है ।
मरुस्थल में रहनेवाले प्राणियों अथवा वहाँ पाई जानेवाली वनस्पतियों में, सागर के तटीय प्रदेशों के प्राणियों तथा वनस्पतियों से भिन्नता होती है । बर्फ़ीले प्रदेशों (क्षेत्रों) में पाए जानेवाले प्राणी तथा वनस्पतियाँ, समतल मैदानी प्रदेशों के प्राणियों तथा वनस्पतियों से पर्याप्त भिन्न होते हैं ।
जैविक विविधता के स्थाई बने रहने का महत्व:
मनुष्य के साथ-साथ अन्य समस्त सजीवों की आवश्यकता की पूर्ति जैविक विविधता द्वारा ही होती है । अत: सजीवों के अस्तित्व के लिए जैविक विविधता का होना भी काफी महत्वपूर्ण है । मनुष्य की भोजन, वस्त्र तथा निवास इत्यादि मूलभूत आवश्यकताओं और औषधि जैसी अन्य महत्वपूर्ण आवश्यकताओं की पूर्ति जैविक विविधता द्वारा ही होती है ।
पर्यावरणीय महत्व:
ऐसी कल्पना करो कि किसी जंगल में केवल बाघ ही बचे रह गए हैं । ये अपने भोजन के लिए जिन शाकाहारी प्राणियों पर निर्भर होते हैं, वैसा कोई भी प्राणी वहाँ नहीं है । स्पष्ट है, बाघों को निराहार रहना पड़ेगा और आहार न मिलने के कारण उनकी संख्या कम होती जाएगी ।
अत: भक्ष्य के बिना भक्षक का जीवित रह पाना संभव नहीं है । इस उदाहरण से यह ज्ञात होता है कि, प्रकृति में भक्ष्य तथा भक्षक की शृंखलाओं का सुरक्षित रहना अत्यंत आवश्यक है क्योंकि दोनों में से किसी एक के नष्ट होने पर दूसरा भी नष्ट होनेवाला है ही ।
संक्षेप में, उत्पादक वनस्पतियाँ, शाकाहारी प्राणी, मांसाहारी प्राणी आदि उतना न हों, तो भी जीवाणुओं जैसे अपघटकों की संख्या में सही संतुलन रहने पर भी प्रकृति में यह शृंखला अबाध रूप में शुरू रहेगी ।
जैविक विविधता में होनेवाले ह्रास के कारण:
जैविक विविधता के विनाश का मुख्य कारण हमारे देश की जनसंख्या में अत्यंत तीव्र गति से होनेवाली वृद्धि है । जनसंख्या में अपार वृद्धि होने से खाद्यान्नों की माँग बड़ी है । इसके लिए किसानों ने एकफसली विधि से खेती करना शुरू कर दिया है ।
एकफसली विधि में अधिक उत्पादन देनेवाली और अधिक पैसे देनेवाली फसलों की बोआई की जाने लगी । फलत: विभिन्न फसलों की बोआई की पारंपरिक विधि खंडित हो गई और एकफसली विधि से फसल की बोआई का अनुपात बढ़ गया । इसके कारण वनस्पतियों की विविधता खतरे में पड़ गई ।
प्राणियों के संबंध में भी आजकल ऐसा देखा जा रहा है कि स्थानीय पालतू पशुओं के स्थान पर संकरित विदेशी प्रजातियाँ पाली जा रही है । विदेशी प्रजातियों की पैठ के कारण स्थानीय देशी प्रजातियाँ खतरे में पड़ गई हैं ।
इसके अतिरिक्त विशिष्ट प्रजाति की वनस्पतियों की कटाई और विशिष्ट प्राणियों का शिकार भी होने लगा है । फलत: प्राणियों की प्रजातियों तथा संख्या में कमी हो रही है । कुछ प्रजातियाँ तो संकटग्रस्त हो चुकी है और कुछ तो लुप्त भी हो चुकी हैं । कुछ प्रजातियाँ लुप्त होने के कगार पर हैं ।
निवास के लिए जमीन की माँग बढ़ने के कारण, जहाँ किसी समय भरपूर वनसंपदा थी, वहाँ की वनस्पतियों की बड़े पैमाने पर कटाई करके जमीन को खाली जा रहा
है । इस जमीन पर मानव की बस्तियाँ बढ़ रही है ।
बड़े-बड़े बाँधों, सड़कों ओर उद्योगों का के लिए निर्माण कार्य करने, खानें खोदने के कारण खनिजों तथा प्राकृतिक स्रोतों का असीमित उपयोग तो होता ही है ,परंतु इस प्रकार के निर्माण कार्य से जैविक विविधता द्वारा समृद्ध अधिवासों का विनाश हो जाता हे । जैविक विविधता के ह्रास का यह एक और कारण है ।
वातावरण में उत्पन्न प्रदूषण भी कई प्रजातियों की संख्या में होनेवाली कमी का एक कारण बन रहा है । संवेदनशील तथा विशिष्ट परिस्थिति में ही जीवित रह सकनेवाली कई दुष्प्राप्य प्रजातियों के लिए पृथ्वी के तापमान में होनेवाली वृद्धि भी खतरनाक हो सकती है । जलवायु में परिवर्तन के कारण प्राकृतिक अधिवासों में बड़े पैमाने पर परिवर्तन हो रहे है ।
इन कारणों के साथ-साथ अन्य असंख्य कारण भी जैविक विविधता के ह्रास के कारण हैं । जैविक विविधता को बनाए रखने के लिए आज हासोन्मुख ऐसी प्रजातियों का संवर्धन, संरक्षण करने की आवश्यकता है ।
दुष्प्राप्य प्रजाति के सजीवों के संरक्षण के उपाय:
दुष्प्राप्य प्रजाति के सजीवों का संरक्षण करने के लिए उससे संबंधित कठोर कानून बनाए गए हैं । इसके लिए विभिन्न उपाय किए जा रहे हैं ।
इनमें से कुछ उपाय निम्नलिखित हैं:
i. राष्ट्रीय उद्यानों तथा अभयारण्यों का निर्माण करना ।
ii. कुछ क्षेत्रों को ‘आरक्षित जैविक विभाग’ के रूप में घोषित करना ।
iii. विशिष्ट प्रजातियों के संवर्धन के लिए विशेष प्रकल्प शुरू करना ।
iv. प्राणियों की कुछ प्रजातियों का प्राणिसंग्रहालयों में और वनस्पतियों का वानस्पतिक उद्यानों में संवर्धन करना ।
v. पारंपरिक ज्ञान की जानकारी देना ।
जैविक विविधता से संबंधित ऐसा ज्ञान देने की शुरुआत हो चुकी है । जैविक विविधता के संरक्षण एवं संवर्धन में लोगों का सहयोग प्राप्त करके उसके संवर्धन पर वर्तमान समय में विशेष जोर दिया जा रहा है ।
फसलों की देशी (स्थानीय) प्रजातियों में रोगप्रतिबंधक क्षमता, प्रतिकूल परिस्थिति में भी बनी रहने की क्षमता तथा शीघ्र फसल तैयार होने जैसे कई गुणधर्म पाए जाते हैं ।
नवीन प्रजातियों के साथ इन प्रजातियों को संकरित कराने पर इन गुणधर्मों का लाभ प्राप्त होता है, परंतु उसके लिए स्थानीय प्रजातियों के नमूने सँभालना तथा टिकाकर रखना पड़ता है । इसीलिए ही अब ‘बीज बैंक’ शुरू किए गए हैं । स्थानीय प्रजातियों के गुणसूत्रों का संरक्षण करने के लिए गुणसूत्र बैंक हैं । वर्तमान समय में जैविक प्रौद्योगिकी द्वारा इस संकल्पना का प्रायोगिक उपयोग किया जा रहा है ।
आरक्षित जैविक विभाग:
इस क्षेत्र में भूभाग पर स्थित वन्यजीवों का संरक्षण किया जाता है । स्थानीय लोगों को उनके दैनिक कार्यक्लापों और उद्योग चालू रखने की अनुज्ञा दी जाती है ।
अंतर्राष्ट्रीय व्यापार द्वारा जिन वनस्पतियों और वन्य प्राणियों पर खतरा उत्पन्न हो चुका है, उनके संरक्षण से संबंधित एक संधि सन १९७५ से ही कार्यान्वित हो चुकी है । इस संधि द्वारा वन्यजीवों के आयात-निर्यात पर नियंत्रण रखा जाता है ।
जैविक विविधता के संरक्षण के लिए सन १९९५ में ब्राजील के ‘रियो-डि-जेनेरो’ नामक स्थान पर वैश्विक परिषद में जैविक विविधता की संधि पर हस्ताक्षर किए गए हैं । इस संधि में जैविक-विविधता के संवर्धन पर विशेष जोर दिया गया है ।