Read this article in Hindi to learn about the various sources of energy.
दूध, पानी आदि गर्म करने के लिए ऊष्मीय ऊर्जा आवश्यक होती है । बल्ब भी विद्युत ऊर्जा द्वारा चमकता हैं । ऊर्जा चाहे किसी भी रूप में हो, उसके द्वारा कार्य किया जाता है ।
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बिजली के बल्ब के चमकने पर विद्युतीय ऊर्जा का प्रकाशीय ऊर्जा में रूपांतरण होता है । ध्वनिवर्धक (लाउड स्पीकर) में विद्युतीय ऊर्जा का ध्वनि ऊर्जा में रूपांतरण होता है । अत: ऊर्जा के रूप भिन्न हों, तो भी उसका एक रूप से दूसरे रूप में रूपांतरण किया जा सकता है ।
मनुष्य ने जब गुफाओं में रहते हुए शिकार करना शुरू किया तब मारे गए शिकार को भूनने के लिए आग का उपयोग करने लगा । उसके लिए उसने आसपास की लकड़ी जलाकर ऊष्मा का निर्माण किया और ऊष्मा का उपयोग शुरू किया । जिन पदार्थों के ज्वलन से ऊर्जा का निर्माण होता है, उन्हें ‘ईंधन’ कहते हैं ।
जीवाश्म ईंधन:
बहुत वर्षों पहले प्राणियों तथा वनस्पतियों के अवशेष जमीन में दब गए । इन अवशेषों पर जमीन के उच्च दाब और अंदर की ऊष्मा के प्रभाव से उनका ईंधन में रूपांतरण हो गया । ऐसे ईंधन को ‘जीवाश्म ईंधन’ कहते हैं । ये ईंधन लाखों वर्षों में निर्मित होते हैं । इस जीवाश्म ईंधन के भंडार सीमित हैं । इसलिए इनका उपयोग सही ढंग से करने की आवश्यकता है ।
जीवाश्म ईंधन पृथ्वी के अंदर ठोस, द्रव तथा गैसीय; तीनों अवस्थाओं में पाए जाते हैं । इसमें कोयले, खनिज तेल तथा प्राकृतिक गैस का समावेश है । वैज्ञानिकों का यह अनुमान है कि इन ईंधनों में कोयले का निर्माण, वनस्पतियों के अवशेषों से और खनिज तेल तथा प्राकृतिक गैस का निर्माण समुद्री प्राणियों तथा वनस्पतियों से हुआ है ।
सभी जीवाश्म ईंधनों में हाइड्रोकार्बनों के यौगिक पाए जाते है । इसके अतिरिक्त दैनिक जीवन में हम अन्य कई प्रकार के ईंधनों का उपयोग करते हैं । जैसे: गोबर के उपले, सूखी लकड़ी तथा लकड़ी का कोयला (चारकोल) इत्यादि ।
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गाँवों तथा देहातों में ईंधन के रूप में सूखी लकड़ी के पट्टों का उपयोग करते हैं । १ किलोग्राम लकड़ी से लगभग १७०० किलो जूल के बराबर ऊर्जा मिलती है । ‘जूल’ ऊष्मीय ऊर्जा की इकाई (मात्रक) है । लकड़ी से मिलनेवाली ऊर्जा, कोयले से मिलनेवाली ऊर्जा की तुलना में बहुत कम होती है । लकड़ी के फट्ठों का उपयोग करने पर जंगलों का विनाश होता है ।
इससे पर्यावरण को हानि पहुँचती है जो चिंता का विषय है । ‘चारकोल’ का अर्थ है, ‘कोयलागरी कोयला’ अथवा ‘लकड़ी का कोयला’ । हवा की नियंत्रित तथा सीमित आपूर्ति करके लकड़ी के दहन से चारकोल तैयार करते हैं । चारकोल के जलने पर धुआ नहीं निकलता ।
पृथ्वी के गर्भ में लगभग २५००० मीटर के बराबर गहराई पर खनिज तेल पाया जाता है । इससे पेट्रोल, डीजल, मिट्टी का तेल तथा ईंधन तेल आदि घटक प्राप्त किए जाते हैं । वाहनों के ईंधन के रूप में पेट्रोल तथा डीजल का, घरेलू ईंधन के रूप में मिट्टी के तेल का और कारखानों की भट्ठियों में ईंधन तेल का उपयोग करते हैं ।
प्राकृतिक गैस, ईंधन के रूप में उपयोगी अत्यंत सुविधाजनक ईंधन है । यह शीघ्र जलने लगती है और इस ज्वलन के बाद अवशेष के रूप में कोई ठोस पदार्थ नहीं बचता । इसके अतिरिक्त पाइपों के माध्यम से इसे मुख्य स्रोत से स्थलांतरित करना भी आसान होता है । इसके ज्वलन पर नियंत्रण भी किया जा सकता है । मीथेन (CH4) इथेन (C2H6) प्रोपेन (C2H8) तथा ब्यूटेन (C4H10) इत्यादि प्राकृतिक गैसों के कुछ प्रकार
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हैं ।
जीवाश्म ईंधनों तथा अन्य ईंधनों के भंडार सीमित हैं । हमारे सौरमंडल में ऊर्जा का एकमात्र स्रोत सूर्य है । प्राणी तथा वनस्पतियाँ सूर्य की ही ऊर्जा का अभिशोषण करती हैं । उसी ऊर्जा द्वारा उनका पोषण होता है और अतिरिक्त ऊर्जा रासायनिक ऊर्जा के रूप में उनके अंदर भंडारित की जाती है । उनकी मृत्यु (विनाश) के बाद यही ऊर्जा हमें जीवाश्म ईंधन तथा अन्य ईंधनों के रूप में वापस मिलती है । ऐसा ही है यह ऊर्जाचक्र ।
सूर्य द्वारा पृथ्वी को प्रतिवर्ष लगभग ७ x १०१७ किलोवाट के बराबर प्रचंड ऊर्जा प्राप्त होती है । तुम्हें शायद यह कल्पना भी नहीं होगी कि हमें प्रतिवर्ष जितनी ऊर्जा की आवश्यकता होती है, उतनी ऊर्जा सूर्य हमें केवल ४० मिनट में देता है और वह भी मुफ्त ! बिना कोई मीटर लगाए !
आजकल इसके लिए सूर्य चूल्हा (पाचित्र) तथा सौर ऊष्मक आदि उपलब्ध हैं । दर्पणों की सहायता से इनमें सौर ऊर्जा एकत्र करके इनसे भोजन बनाने तथा पानी गरम करने इत्यादि का काम किया जाता है ।
सौर सेल:
सौर विद्युत सेलों मैं सौर ऊर्जा का विद्युतीय ऊर्जा में रूपांतरण किया जाता है । रात के समय इसका उपयोग बल्ब द्वारा प्रकाश प्राप्त करने के लिए किया जाता है । आजकल बाजार में सौर कंदील भी उपलब्ध हैं । इनका भी उपयोग अधिक संख्या में किया जाने लगा है ।
जीवाश्म ईंधन के भंडार सीमित हैं परंतु सौर ऊर्जा पृथ्वी पर सतत प्राप्त होनेवाली ऊर्जा है । इसलिए कोयले, खनिज तेल आदि को ‘पारंपरिक’ या ‘अनवीकरणीय’ ऊर्जा स्रोत कहते हैं क्योंकि इन्हें पुन: बना पाना संभव नहीं है ।
इसके विपरीत सौर ऊर्जा को ‘अपारंपरिक’ या ‘नवीकरणीय’ ऊर्जा स्रोत कहते हैं क्योंकि यह स्रोत हमें प्रतिदिन प्राप्त होता रहता है । पवन ऊर्जा, जलविद्युत ऊर्जा, जैविक गैस तथा जैविक डीजल आदि ऊर्जा के नवीकरणीय स्रोतों का हम उपयोग कर रहे हैं, फिर भी आज हम ऊर्जा के संकट से ग्रस्त है ।
इसका मुख्य कारण है जनसंख्या की वृद्धि और बढ़ते हुए उद्योग-धंधे । इन्हें जितनी ऊर्जा चाहिए, उतनी ऊर्जा सतत निर्मित क्त पाना कठिन है । इसके लिए नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों के निर्माण का प्रयास करना समय की आवश्यकता है ।
खनिज तेल तथा कोयले जैसे पारंपरिक ऊर्जा स्रोत उपयोग के लिए सुविधाजनक होने पर भी उनसे अनेक समस्याएँ निर्मित हुई हैं । पारंपरिक ईंधनों के ज्वलन से निकलनेवाली कार्बन डाइआक्साइड द्वारा वायुमंडल का तापमान बढ़ रहा है ।
अन्य कई गैसों द्वारा प्रदूषण की समस्या की गंभीरता भी बढ़ रही है । वायुमंडल में छोड़ी गई विषैली गैसों द्वारा अम्लीय वर्षा (एसिड रेन) जैसे खतरे बढ़ रहे हैं । वायुमंडलीय ओजोन की परत में छिद्र होने के कारण उनमें से होकर हानिकारक पराबैगनी किरणें पृथ्वी तक पहुँचने लगी हैं ।
लकड़ी की अनियंत्रित कटाई के कारण जंगल धीरे-धीरे कम हो रहे हैं । इससे वनस्पतियों की विविधता पर भी संकट आ चुका है । ऐसी परिस्थित में सरकारों द्वारा ऊर्जा के नवीकरणीय स्रोतों का उपयोग करने की प्रेरणा दी जा रही है ।
लगभग ७० प्रतिशत खनिज तेल का आयात करने के कारण सरकार द्वारा सौरऊर्जा, पवन ऊर्जा के साथ-साथ गोबर गैस संयंत्रों के लिए ठोस कार्यक्रम, आर्थिक सहायता और प्रौद्योगिकी जैसी अन्य सुविधाएँ उपलब्ध कराई गई हैं ।
परमाणु ऊर्जा:
यूरेनियम के परमाणुओं पर न्यूट्रानों द्वारा आघात करने पर उसमें से परमाणु ऊर्जा मिलती है । इसका उपयोग करके भारत ने परमाणु ऊर्जा प्रकल्प हाथ में लिया है । महाराष्ट्र में तारापुर परमाणु प्रकल्प से विद्युत उत्पादन शुरू हो चुका है । इसी प्रकार गुजरात के सूरत जिले के काकरापार में भी एक प्रकल्प है ।
ऐसे कई प्रकल्प शुरू करने में सरकार की रुचि बढ़ी है, जिससे हमारे हाथ में ऊर्जा का एक नया स्रोत आ सकेगा । इससे ऐसी आशा है कि वर्तमान समय का ऊर्जा संकट कुछ अंशों में कम होगा । आज भारत के विकास की दर क्रमश: बढ़ रही है । विदेशों में भारत को एक विकासोन्मुख देश की मान्यता मिल चुकी है ।
अर्थशास्त्रियों की ऐसी मान्यता है कि वर्ष २०२० तक भारत विश्व की एक प्रमुख शक्ति के रूप में अपनी पहचान करा सकेगा । इसके लिए विकास की यह गति बनाए रखने के लिए हमारा देश ऊर्जा के संकट का सामना करने के लिए कटिबद्ध है ।
सरकार भी निम्नलिखित बातों पर विशेष जोर दे रही है:
(i) नए-नए ऊर्जा स्रोतों की खोज करना ।
(ii) नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों को प्रधानता देना ।
(iii) अनवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों का उपयोग कंजूसी और दायित्व के साथ करना । इसके लिए सामाजिक उद्बोधन करना ।
(iv) कम ईंधन खर्च करनवाले साधनों, जैसे नवीन प्रौद्योगिकी पर आधारित चूल्हों, बर्नरों तथा बल्बों के उपयोग के लिए प्रोत्साहन देना ।