Here is an essay on ‘Environment and Our Lives’ for class 6, 7, 8, 9, 10, 11 and 12. Find paragraphs, long and short essays on ‘Environment and Our Lives’ especially written for school and college students in
Hindi language.
अनादिकाल से मानव और प्रकृति का गहरा संबंध रहा है । प्रारंभ में मानव की आवश्यकताएँ सीमित थीं अत: वह प्रकृति द्वारा दी गई विरासतों (जल, भूमि, वायु, पौधे आदि) का उचित प्रयोग करता था ।
औद्योगिक विकास एवं मानव जीवनशैली में बदलाव के कारण मानव ने प्रकृति का अंधाधुंध दोहन शुरु कर दिया, जिसके कारण पर्यावरण में अंसतुलन पैदा हो गया । इस असंतुलन के कारण मानव जीवन ही नहीं, बल्कि समस्त जीवधारियों का जीवन संकट में है । मनुष्य अपनी आवश्यकताओं को सीमित करके, विकास के उचित तरीके अपनाकर पर्यावरण असंतुलन एवं प्रदूषण को कम कर सकता है ।
ADVERTISEMENTS:
कृषि एवं पशुपालन का पर्यावरण पर प्रभाव:
कृषि विश्व जनसंख्या की अन्नपूर्णा है । कृषि में भूमि की जुताई, फसल उगाना, काटना, पशुपालन आदि सम्मिलित हैं । आधुनिक कृषि परंपरागत कृषि से बिल्कुल भिन्न है । पारंपरिक कृषि मानवीय तथा पशु श्रम पर आधारित थी, जबकि आधुनिक कृषि अत्यन्त यांत्रिक है ।
कृषि संबंधी कई गतिविधियाँ पर्यावरण के अनुकूल नहीं है । कुछ गतिविधियाँ पर्यावरण को प्रत्यक्ष तथा कुछ परोक्ष रूप से प्रभावित करती हैं । आधुनिक कृषि में उत्पादन वृद्धि के लिए उर्वरकों का प्रयोग दिन-प्रतिदिन बढ़ रहा है । रासायनिक उर्वरक यद्यपि खाद्यान्नों का उत्पादन बढ़ाने में लाभदायक हैं, लेकिन पर्यावरण पर ये हानिकारक प्रभाव डाल रहे हैं । सामान्यत: खेत में डाले गए कुल रासायनिक उर्वरक का लगभग 60 प्रतिशत अंश ही पौधों द्वारा उपयोग में लाया जाता है ।
अवशेष उर्वरक जो मिट्टी में रह जाते हैं, कई तरह के प्रभाव डालते हैं जैसे वर्षा के जल के साथ प्रवाहित होकर खेतों के निकट स्थित तालाबों, नदियों या झीलों में पहुंच जाते हैं । वहाँ ये उन जल स्रोतों को प्रदूषित करते हैं तथा मिट्टी में रिसकर भू-जल को भी प्रदूषित करते हैं ।
प्रत्येक वर्ष कृषकों को पौधों के विभिन्न रोगों, कीड़ों आदि से जूझना पड़ता है । फसलों को रोगों तथा कीड़ों से बचाने के लिए अनेक प्रकार के कीटनाशकों व रोगनाशकों का प्रयोग करना पड़ता है । इनका निरंतर प्रयोग मिट्टी की उर्वरता के लिए घातक तो होती हैं साथ ही मनुष्य के स्वास्थ्य पर भी प्रतिकूल प्रभाव डालती है ।
ADVERTISEMENTS:
पशुपालन कृषि की वह शाखा है, जो पशुओं के संवर्धन तथा पालन से संबंद्ध है । पशुओं को पालकर उनसे भोजन तथा अन्य कार्य लिए जाते हैं । पशुधन से प्राप्त उत्पादों का व्यावसायिक स्तर पर उपयोग करने के लिए नवीनतम तकनीकें प्रयुक्त हो रही हैं ।
पशुओं को उचित खुराक व प्रबंधन पर भारी धन खर्च होता है, जिससे अधिकतम प्रतिफल मिल सके, परन्तु विश्व के कई भागों में पशु-आहार व प्रबंधन उचित नहीं है । बढ़ती जनसंख्या का दबाव पशुधन पर भी पड रहा है । पशु उत्पादों की माँग दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है ।
वैज्ञानिक इन उत्पादों की वृद्धि पर कठोर परिश्रम कर रहे हैं । उन्होंने पशुओं पर गहन शोध किया है । वे कई क्षेत्रों में सफल भी हुए हैं जैसे अधिक ऊन के लिए उन्नत किस्म की भेडों का पालन क्लोन निर्माण कर पशुओं का कृत्रिम प्रजनन । नवीनतम शोध में उच्च अर्थ लाभ वाली नस्लों को प्रोत्साहित किया जा रहा है । इससे जैविक विविधता प्रभावित हो रही है ।
उद्योग:
उद्योग का संबंध किसी क्षेत्र में वस्तुओं के उत्पादन तथा सेवाओं से है । प्रौद्योगिकी तथा प्राकृतिक संसाधन मिल कर वस्तुओं का उत्पादन करते हैं । वस्तुओं का उत्पादन तो पहले भी होता था परन्तु अधिक मात्रा में उत्पादन औद्योगिक क्रांति के बाद प्रारंभ हुआ ।
ADVERTISEMENTS:
अधिक मात्रा में उत्पादन तभी संभव है, जब वस्तुएं मशीनों द्वारा उत्पन्न हों, नई प्रौद्योगिकी का प्रयोग हो और कार्यकुशल जन-शक्ति उपलब्ध हों । वर्तमान में प्रमुख उद्योग लोहा तथा इस्पात उद्योग, ऑटोमोबाइल उद्योग, चीनी उद्योग तथा कपड़ा उद्योग आदि हैं ।
प्रत्येक उद्योग में निवेश तथा उत्पादन होता है । निवेश में कच्चा माल, मशीनें, प्रौद्योगिकी, पूंजी, श्रम आदि आते हैं । उत्पादन में अंतिम उत्पाद या तैयार वस्तुएं आती हैं । जब एक उद्योग का अंतिम उत्पाद किसी अन्य उद्योग में प्रयुक्त होता है तो उसे उत्पादित सामान कहते हैं ।
इस्पात एक महत्वपूर्ण उत्पादित सामान है, क्योंकि यह लोहा तथा इस्पात उद्योग में अंतिम रूप में तैयार होता है, इसे भवन निर्माण, उद्योग, ऑटोमोबाइल उद्योग, जलपोत निर्माण उद्योग आदि कई अन्य उद्योगों में प्रयुक्त करते हैं ।
उद्योग के अवयव:
ADVERTISEMENTS:
अधिकतर उद्योगों के चार निवेश होते हैं पूंजी, कच्चा माल, प्रौद्योगिकी तथा श्रम ।
1. पूंजी:
प्रत्येक उद्योग को दो प्रकार की पूंजी की आवश्यकता होती है । भौतिक पूंजी (संसाधन) तथा आर्थिक पूंजी । भौतिक पूंजी भवन, मशीनें आदि हैं तथा आर्थिक पूंजी स्वयं की या बैंकों या अन्य संस्थाओं से ऋण के रूप में ली जाती हैं ।
2. कच्चा माल:
अधिकतर उद्योग प्राकृतिक संसाधनों (नवीनीकरणीय या अनवीकरणीय) द्वारा प्रदत्त कच्चे माल पर निर्भर हैं ।
3. प्रौद्योगिकी:
वर्तमान में प्रौद्योगिकी के विकास से अत्यधिक औद्योगिक निर्माण हुआ है । पुन: चक्रित प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में नवीनता समाज व संस्कृति को बदल सकती है ।
4. श्रम:
श्रम का संबंध कार्मिक शक्ति से है । श्रमिकों के समूह बनाए जाते हैं, जो अपने-अपने कार्य को मालिकों के साथ निर्धारित करते हैं ।
वस्तु निर्माण की प्रक्रिया:
वस्तुओं का निर्माण तीन प्रक्रियाओं से होता है:
1. संयोजन:
विभिन्न भागों को जोड़कर अंतिम उत्पाद तैयार करना संयोजन है । जैसे: साईकिल को पहियों, हैंडल, सीट, चेन एवं अन्य भागों से जोड़कर तैयार करते हैं ।
2. परिवर्तन:
परिवर्तन में कच्चे माल को नए माल या अंतिम उत्पाद के रूप में परिवर्तित करते हैं । जैसे: वृक्षों को चीर कर लकड़ी बनाना ।
3. निष्कर्षण:
निष्कर्षण में कच्चे माल में से एक या दो अवयव निकाल लिए जाते हैं । जैसे: पेट्रोल कच्चे तेल से अलग किया जाता है । उपरोक्त तीन प्रक्रियाओं के अतिरिक्त अन्य प्रक्रियाओं द्वारा भी वस्तुओं का निर्माण किया जाता है । प्रक्रियाएं एक उद्योग से दूसरे उद्योग तक भिन्न हो जाती हैं ।
वस्तुओं का उत्पादन:
वस्तुओं का उत्पादन प्राचीन काल से होता आ रहा है । इस उत्पादन के कई प्रमाण मिले हैं, जैसे भवनों में प्रयुक्त ईंटें, अनाज भंडारण वाले मिट्टी के पात्र आदि । ये सभी हाथों से बने हैं । सभ्यता के विकास के साथ नवीन उत्पादन विधि भी विकसित हो गई है । जैसे: कपड़ा उद्योग में विभिन्न स्रोतों से लिए गए तंतुओं से कपड़ा निर्मित होता है ।
कपास, पटसन, रेशम, ऊन आदि मुख्य तंतु स्रोत हैं । नाइलोन तथा पोलिएस्टर जैसी विशेष कृत्रिम सामग्री का भी उपयोग तंतु स्रोत के रूप में किया जाता है । विभिन्न स्रोतों से प्राप्त तंतुओं को सीधा करके पतले धागे बनाए जाते हैं । इन्हें कताई द्वारा एंठा जाता है जिससे धागा व कपड़ा सुदृढ़ बनता है । ऐंठे हुए तंतु को सूत कहते हैं, जिसे बुनकर कपड़ा तैयार किया जाता है ।
योजना तथा प्रबंधन:
प्रत्येक स्तर पर योजना तथा प्रबंधन की आवश्यकता होती है । जैसे राष्ट्रीय स्तर पर सरकार की भूमिका मुख्य होती है और वैयक्तिक स्तर पर प्रबंधन बोर्ड की भूमिका महत्वपूर्ण होती है । राष्ट्रीय स्तर पर सरकार किसी क्षेत्र में त्वरित औद्योगिकरण के लिए कर प्रणाली में छूट की नीति अपना सकती है । वैयक्तिक स्तर पर प्रबंधन बोर्ड बाजार की प्रवृत्तियों तथा प्रतियोगिता के अनुसार योजना अपनाता है ।
प्रबंधन बोर्ड सकल उत्पादन प्रक्रिया का निरीक्षण एवं पर्यवेक्षण करता है । साथ ही उद्योग के विभिन्न उपखंडों में समन्वयन का कार्य भी करता है । मानव संसाधन प्रबंधक कुशल श्रमिकों की व्यवस्था करता है उत्पादन प्रबंधक उत्पादन देखते हैं, मार्केटिंग प्रबंधक बाजार में उत्पादन के विक्रय संबंधी योजना बनाते हैं ।
औद्योगिक अपशिष्ट:
लगभग सभी उद्योगों से विभिन्न प्रकार के अपशिष्ट निकलते हैं जिनमें से कई जीवन के लिए खतरनाक होते हैं । यह अपशिष्ट ठोस, तरल या गैसीय हो सकते हैं । इनसे पर्यावरण प्रभावित होता है । अपशिष्ट सामग्री में ज्वलनशील क्षयकारी तथा विषाक्त तत्व हैं, जो पर्यावरण के लिए हानिकारक होते हैं ।
1. कपड़ा उद्योग:
कपड़ा उद्योग में कपास, रेशम, कृत्रिम रेशे जैसे विभिन्न तंतु प्रयुक्त होते हैं । कपड़ा रंगने में अधिक मात्रा में पानी चाहिए । जब यह पानी अपशिष्ट में छोड़ा जाता है जो इसमें कई रसायन मिले होते हैं ।
2. चर्म शोधन-गृह:
चर्म शोधन गृह वे कारखाने हैं जहाँ चमड़ा बनता है । इस उद्योग के लिए कच्चा माल मृत पशु की खालें (त्वचा) हैं । उनकी त्वचा को शुद्ध करके चमड़ा बनाते हैं । इस प्रक्रिया में चर्म शोधन गृह ठोस तरल व गैसीय अपशिष्ट छोड़ते हैं । इनके द्वारा छोड़ा गया तरल अपशिष्ट अत्यंत विषैला होता है ।
3. लोहा एवं इस्पात उद्योग:
यह उद्योग भारी मात्रा में अपशिष्ट छोड़ते हैं । सल्फ़्युरिक तेजाब, हाइड्रोक्लोरिक तेजाब जैसे कई विषैले तत्व निकलते हैं । अपशिष्ट के रूप में भारी मात्रा में राख तथा धूल रह जाती है ।
4. तापीय ऊर्जा उद्योग:
सभी तापीय ऊर्जा संयंत्र कोयले को ईंधन के रूप में प्रयुक्त करके भाप बनाते हैं, जो जनरेटर चलाती हैं । इसके बाद टनों राख बच जाती है । यह बहुत बारीक होती है । कोयले के जलने पर अन्य गैसें धुएँ के साथ गैसीय अपशिष्ट के रूप में निकलती है ।
5. तेल शोधक कारखाने:
आज के युग में पेट्रोलियम मुख्य ऊर्जा-स्रोत है । इसे शुद्ध करते समय भारी मात्रा में गैसीय तथा तरल अपशिष्ट उत्पन्न होते हैं ।
उपर्युक्त स्रोतों के अतिरिक्त कागज उद्योग, चीनी उद्योग, रबड़ उद्योग आदि कई स्रोतों से भी अपशिष्ट निकलते हैं ।
अपशिष्ट का प्रबंधन:
विश्व के अधिकतर भागों में अपशिष्ट की मात्रा दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है । अपशिष्ट के निपटारे की समस्या भी प्रतिदिन बढ रही है । यदि अपशिष्ट का उचित निपटारा नहीं होता तो हमारे पर्यावरण को प्रभावित कर सकता है । यह वायु, जल तथा भूमि को प्रदूषित कर सकता है और स्वास्थ्य के लिए कई खतरे पैदा कर सकता है ।
ठोस अपशिष्ट का निपटारा:
ठोस अपशिष्ट के निपटारे की कई विधियाँ हैं:
1. पुनःउपयोग:
यह प्राचीन विधि है जिसमें अपशिष्ट वस्तुओं को पुन उपयोग के योग्य बनाते हैं । सभी धात्विक वस्तुओं को पिघलाकर नई वस्तुएं बन सकती हैं । यह प्राचीन युग में भी होता था । प्लास्टिक की वस्तुओं की अपशिष्ट से नई प्लास्टिक-वस्तुएँ बन सकती हैं । शीशा और कागज 100% पुन उपयोग योग्य है ।
2. भूमि में दबाना:
यह भूमि पर अपशिष्ट के निपटारे की अत्यंत प्रचलित विधि है क्योंकि इसमें मुख्य खर्च केवल परिवहन का है । आधुनिक भूमि-भराव में ठोस अपशिष्ट को पतली परतों में बिछाया जाता है । दूसरी परत बिछाने से पूर्व पहली परत को बुलडोजर द्वारा दबाया जाता है । बीच-बीच में मिट्टी की परत बिछाई जाती है और उसे भी बुलडोजर से ठोस बनाया जाता है । इसके लिए ऐसे स्थल चुनते हैं जहाँ बाढ़ का पानी न पहुंच सके । भू-जलस्तर भी गहरा होना चाहिए ।
3. कड़ा खाद बनाना:
इस प्रक्रिया में अपघटन द्वारा ठोस अपशिष्ट को उर्वरक में बदला जाता है । अपशिष्ट की छँटाई की जाती है ताकि वही पदार्थ चुने जाएं जिन्हें अपघटित किया जा सकता है, जैसे कागज, लकड़ी, पत्ते आदि । प्लास्टिक जैसी वस्तुएं अपघटित नहीं होतीं ।
अपशिष्ट को इस प्रकार की परतों में रखते हैं कि सुगमता से वायु संचार हो सके । थोड़ा पानी डाला जाता है ताकि अपघटन सुगम हो सके । कुछ दिन तक सामग्री या ढेर को ढँक दिया जाता है । लगभग तीन सप्ताह के बाद इसे खाद के रूप में प्रयुक्त कर सकते हैं ।
4. भस्मक:
भस्मक में अपशिष्ट को जलाया जाता है ताकि इसका भार तथा आयतन कम हो जाए । इससे लगभग 90 प्रतिशत अपशिष्ट नष्ट हो जाते हैं । परंपरागत भस्मक धुएँ तथा राख से वायु प्रदूषित करते थे परन्तु आधुनिक भस्मकों में छलनीदार थैली, प्रस्वेदकों गीले मार्जकों आदि के द्वारा इस प्रदूषण को नियंत्रित किया जाता है ।
तरल अपशिष्ट का निपटारा:
अपशिष्ट जल मानव-पर्यावरण के लिए हानिकारक हो सकता है । अत: यह आवश्यक है कि तरल अपशिष्ट का निपटारा इस ढंग से हो कि यह पर्यावरण को प्रभावित न कर सके । तरल अपशिष्ट के निपटारे के लिए सबसे पहले इसमें मिला ठोस कचरा हटाते हैं ताकि मशीनों को क्षति न पहुंच सके ।
फिर रेत, बजरी, कंकड़ जैसे ठोस अवयवों को नीचे बैठने दिया जाता है । बाद में इन्हें अलग करके ठोस अपशिष्ट के रूप में भूमि के नीचे दबाया जा सकता है । या फिर ठोस अपशिष्ट के निपटारे की किसी अन्य प्रक्रिया का उपयोग किया जा सकता है ।
गैसीय अपशिष्ट का निपटारा:
गैसीय अपशिष्ट मुख्यत: धुएँ के रूप में निकलती है । यह धुँआ वाहनों तथा उद्योगों की चिमनियों से उत्पन्न होता है । गैसीय अपशिष्ट का ठोस व तरल अपशिष्ट की तरह निपटारा करना सरल नहीं है । निकलते ही गैसीय अपशिष्ट वायु में मिल जाती है । फिर भी गैसीय अपशिष्ट के उत्पन्न को कम कर सकते हैं ।
इस गैसीय अपशिष्ट को कम करने तथा उसके उचित निपटारे के विधियाँ निम्नलिखित हैं:
1. ऊंची चिमनियाँ:
चिमनियाँ ऊंची होनी चालिए ताकि निकलने वाला धुँआ वायुमंडल में ऊपर जा सके । यह वायु प्रदूषण नियंत्रित करने की विधि नहीं है, परन्तु ऊंचा उठने से इसके विपरीत प्रभाव को कम किया जा सकता है ।
2. स्थिर वैद्युत अवक्षेपक:
यह वायु में से प्रदूषक तत्व निकालने का उपकरण है । इसे फैक्ट्री या ताप-संयंत्र की चिमनी या धुएँ के निर्गमन बिन्दु के मुँह पर लगाया जाता है । यह धुएँ में सभी प्रमुख गंदगी को संग्रहित कर लेता है । यह एक महंगा उपकरण है, परन्तु साधारण छलनियों तथा अवक्षेपकों से बहुत अधिक प्रभावशाली है ।
प्रभावी पर्यावरण सहयोगी प्रौद्योगिकी:
आधुनिक प्रौद्योगिकी, उद्योगों को सुरक्षित व मितव्ययी बना सकती है । आधुनिक प्रौद्योगिकी का प्रारूप निर्माण प्रणाली के विभिन्न अपशिष्ट अवयवों के पुन:चक्रण के लिए तैयार हुआ है ।
उदाहरणत:
- ऑटोमोबाइल उद्योग का कबाड़ अन्य धातुओं से मिश्रित कर नई धातु बनाने में उपयोगी हो सकता है । इसी प्रकार ऐसा कबाड़ लगभग सभी उद्योगों में होता है । इन्हें आधुनिक प्रौद्योगिकी द्वारा प्रभावी रूप से पुन:उपयोग के योग्य बनाया जा सकता है ।
- उद्योगों की चिमनियों द्वारा हानिकारक उत्सर्जक वायु प्रदूषण का एक प्रमुख कारण हैं । धूम्रमार्जक औद्योगिक संयंत्रों द्वारा हानिकारक गैसों तथा प्रदूषक तत्वों को दूर किया जा सकता है ।
- कुछ उद्योगों द्वारा रासायनिक अपशिष्ट नदियों तथा तालाबों में प्रवाहित कर दिए जाते हैं । आधुनिक प्रौद्योगिकी में कई ऐसी तकनीकें विकसित हो गई हैं जिनसे इन अपशिष्टों के हानिकारक तत्वों को कम करके उनका पुन उपयोग किया जा सकता है ।
- परिवहन क्षेत्र में सी॰एन॰जी का प्रयोग बढ रहा है, क्योंकि यह अन्य ऊर्जा स्रोतों की अपेक्षा न्यूनतम प्रदूषण फैलाती है । आधुनिक कम्प्यूटर पर आधारित मशीनें सटीक तथा मितव्ययी सिद्ध हुई हैं । यह ऊर्जा बचाती हैं तथा न्यूनतम अपशिष्ट छोड़ती हैं । उत्पादों का प्रारूप कम्प्यूटर में बनता है, जिससे उत्पादन की लागत कम हो जाती है ।
- आधुनिक ऊर्जा संरक्षण के स्रोतों में कुछ पौधे की पत्तियों का उपयोग बायो-डीजल बनाने में किया जा रहा है तथा इस पर शोध भी जारी है ।
राष्ट्रीय पर्यावरणीय मुद्दे:
भारत में औद्योगीकरण 70 तथा 80 के दशक में त्वरित हुआ । इसी के साथ कई संगठन, समितियाँ तथा विभाग स्थापित हुए, जिनका मुख्य कार्य पर्यावरण संबंधी मुद्दों से निपटना है । इनमें सरकार तथा गैर-सरकारी संगठन दोनों ही शामिल हैं । शीघ्र तथा प्रभावकारी परिणामों के लिए भारत सरकार ने कई कानून बनाए हैं, जैसे: पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, फैक्ट्री संशोधन अधिनियम, केन्द्रीय मोटर वाहन संबंधी नियम आदि ।
भारत सरकार ने इन संगठनों तथा विभागों के समुचित संचालन के लिए पर्याप्त धन प्रदान किया है । सरकार ने राष्ट्रीय तथा राज्य-स्तर पर प्रदूषण नियंत्रक बोर्ड बनाएं हैं । ये बोर्ड क्षेत्र का सर्वेक्षण तथा उत्तरदायित्व निश्चित करने के लिए अधिकृत हैं । दोषी को न्यायालय दंडित करता है । यदि कोई फैक्ट्री अपशिष्ट का समुचित निपटारा न करके प्रदूषण का कारण बन रही है तो ये बोर्ड उसे बंद करने का आदेश दे सकते हैं ।
क्षेत्रीय पर्यावरणीय मुद्दे:
क्षेत्रीय या स्थानीय स्तर पर सरकार तथा गैर सरकारी संगठन पर्यावरण के संरक्षण के लिए विविध कदम उठा रहे हैं ।
स्थानीय संगठनों की भूमिका:
स्थानीय स्तर पर नगरपालिका तथा नगर निगम अपशिष्ट के निपटारे में सीधी भूमिका निभाते हैं । औद्योगिक ठोस अपशिष्ट के लिए विभिन्न स्थानों पर बडे कूड़ेदान स्थापित किए जाते हैं । प्रतिदिन प्रात:काल में इन अपशिष्टों को उठाने की व्यवस्था की जाती है । नगर का मल-जल नगर के दूरस्थ भागों में ले जाकर छोड़ा जाता है । विभिन्न उपचार संयंत्र में तरल अपशिष्ट का समुचित उपचार किया जाता है ।
सामुदायिक भूमिका:
अपशिष्टों के निपटारे में सामुदायिक भूमिका महत्वपूर्ण है । लोगों को सड़कों या पार्कों में कूड़ा नहीं फेंकना चाहिए और पानी का जमाव नहीं होने देना चाहिए । लोगों को जैव अपघटन के योग्य तथा अयोग्य अपशिष्ट का ज्ञान होना चाहिए ।
जैव अपघटन योग्य वह अपशिष्ट होते हैं, जिन्हें सूक्ष्म जीव अपघटित करके सुगमता से मिट्टी में मिला सकते हैं । इसमें पौधे तथा उनसे संबंधित सामग्री जैसे: पत्ते, सब्जियाँ, फल आदि सम्मिलित हैं । जैव अपघटन के अयोग्य अपशिष्ट में प्लास्टिक का सामान, पॉलिथिन के थैले, कृत्रिम कपड़े, धातुएँ आदि आती हैं ।
कई उद्योगों द्वारा उत्पन्न सामान पर्यावरण के अनुकूल नहीं होता । हमें वही सामान खरीदना चाहिए, जो पर्यावरण की अनुकूलता को ध्यान में रखकर बनाया गया हो । यदि हम ऐसी वस्तुओं को खरीदना बंद कर दें जो पर्यावरण के अनुकूल नहीं है तो उद्योगों में इनका निर्माण बंद कर दिया जाएगा ।
अपशिष्ट के प्रभावी निपटारे के लिए प्रत्येक व्यक्ति का संयुक्त योगदान अनिवार्य है । इसे संयुक्त प्रयास समझना चाहिए । कोई भी अकेली समिति या व्यक्ति इस कार्य को पूर्ण नहीं कर सकता ।