Here is a compilation of essays on ‘Ecosystem’ for class 8, 9, 10, 11 and 12. Find paragraphs, long and short essays on ‘Ecosystem’ especially written for school and college students in Hindi language.
Essay on Ecosystem
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Essay Contents:
- पारिस्थितिक तंत्र का आशय (Introduction to Ecosystem)
- पारिस्थितिक तंत्र के प्रकार (Types of Ecosystem)
- पारिस्थितिक तंत्र की रचना (Composition of Ecosystem)
- पारिस्थितिक तंत्र के कार्य (Functions of Ecosystem)
- पारिस्थितिक तंत्र का महत्व (Importance of Ecosystem)
- पारिस्थितिक तंत्र में ऊर्जा का प्रवाह (Effect of Energy on Ecosystem)
Essay # 1. पारिस्थितिक तंत्र का आशय (Introduction to Ecosystem):
अंतरिक्ष में संभवत: पृथ्वी ही एक ऐसा यह है जहाँ स्थलमण्डल, जलमण्डल एवं वायुमण्डल उपलब्ध होने के कारण जीवमण्डल का विकास हो पाया है । इस प्रकार स्थलमण्डल, जलमण्डल, वायुमण्डल एवं जीवमण्डल सभी पर्यावरण के घटक हैं । पर्यावरण से अभिप्राय हमारे चारों ओर फैले हुए उस वातावरण एवं परिवेश से है जिससे हम घिरे हुए हैं अर्थात् हमारे चारों ओर जो कुछ भी है वही हमारा पर्यावरण है ।
प्रकृति में पाए जाने वाले पर्यावरण के समस्त घटकों के मध्य परस्पर क्रिया- प्रतिक्रिया होती है जिस प्रकार एक परिवार के सभी सदस्य आपस में संबंधित रहते हैं उसी प्रकार पर्यावरण के विभिन्न घटक भी परस्पर संबंधित एवं एक-दूसरे पर निर्भर रहते हैं ।
जीवों तथा उनके पर्यावरण के पारस्परिक संबंधों के अध्ययन को पारिस्थितिकी कहते हैं । पर्यावरण के सजीव एवं निर्जीव घटक संरचना एवं कार्य की दृष्टि से एक तंत्र के रूप में कार्य करते हैं । जिसे पारिस्थितिक तंत्र कहते हैं । इस प्रकार हम कह सकते हैं कि पारिस्थितिक तंत्र एक क्षेत्र विशेष में विकसित वह व्यवस्था है जिसमें विभिन्न प्रकार के जैविक तथा अजैविक तत्वों से परस्पर क्रिया करते हुए विकसित होते हैं ।
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Essay # 2. पारिस्थितिक तंत्र के प्रकार (Types of Ecosystem):
जीवमण्डल में अनेक प्रकार के पारिस्थितिक तंत्र कार्यरत हैं । पारिस्थितिक तंत्रों को विभिन्न आधारों पर वर्गीकृत किया जा सकता है ।
Essay # 3. पारिस्थितिक तंत्र की रचना (Composition of Ecosystem):
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प्रत्येक पारिस्थितिक तंत्र की संरचना दो प्रकार के घटकों से होती है:
i. जैविक घटक
ii. अजैविक घटक
i. जैविक घटक या सजीव घटक:
जैविक घटक के अंतर्गत विभिन प्रकार के पौधे जन्तु एवं सूक्ष्म जीव आते हैं । पारिस्थितिक तंत्र में जन्तु एवं पादप समुदाय साथ-साथ रहते हैं जो किसी न किसी प्रकार से परस्पर संबंधित होते हैं ।
पोषण के आधार पर जैविक घटकों को तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है:
a. उत्पादक
b. उपभोक्ता
c. अपघटक
a. उत्पादक:
हरे पौधे सूर्य की ऊर्जा के प्रयोग से प्रकाश संश्लेषण क्रिया द्वारा अपना भोजन स्वयं बनाते हैं । पारिस्थितिक तंत्र में ऐसे घटक उत्पादक या स्वपोषी कहलाते हैं ।
b. उपभोक्ता:
इसके अंतर्गत वे सजीव आते हैं जो अपना भोजन स्वयं नहीं बना पाते तथा अपने भोजन के लिए वे पौधों एवं अन्य जीवों पर निर्भर रहते हैं । इस कारण इन्हें पारिस्थितिक तंत्र के परपोषी घटक कहते हैं । ये उत्पादकों द्वारा तैयार भोजन का या अन्य जीवों का उपभोग करते हैं अत: इन्हें उपभोक्ता भी कहते हैं ।
उपभोक्ता जीवों को मुख्यत: तीन श्रेणियों में रखा जाता है:
(a) प्राथमिक उपभोक्ता (शाकाहारी):
जो जीव हरे पौधों अर्थात् उत्पादकों से भोजन प्राप्त करते हैं उन्हें प्राथमिक उपभोक्ता या शाकाहारी कहते हैं । जैसे- गाय, भैंस, बकरी, हिरण, खरगोश, हाथी, टिड्डा आदि ।
(b) द्वितीयक उपभोक्ता (मांसाहारी):
ऐसे जीव जो अपने भोजन के लिए प्राथमिक उपभोक्ता पर निर्भर रहते हैं द्वितीयक उपभोक्ता कहलाते हैं । जैसे- शेर, लोमड़ी, मेढ़क, छिपकली आदि ।
(c) तृतीयक उपभोक्ता:
इस श्रेणी में भी मांसाहारी जीव आते हैं जो अन्य मांसाहारी जीवों या द्वितीयक उपभोक्ताओं से भोजन प्राप्त करते हैं । जैसे- सांप, गिद्ध, बाज, शेर आदि ।
c. अपघटक:
इसके अंतर्गत वे सूक्ष्मजीव आते हैं जो विभिन्न श्रेणी के जीवों (पौधों व जन्तुओं) के मृत शरीर को अपघटित कर देते हैं जैसे: कवक एवं जीवाणु । ये सूक्ष्मजीव मृत शरीर में उपस्थित जटिल कार्बनिक पदार्थों को सरल पदार्थों में अपघटित कर देते हैं । ये सरल पदार्थ झूम में पहुँचकर पुन: पौधों को उपयोग हेतु उपलब्ध हो जाते हैं । इस प्रकार यह चक्र चलता रहता है । मृत जीवों पर निर्भर रहने के कारण अपघटकों को मृतजीवी भी कहते हैं ।
ii. अजैविक घटक:
पारिस्थितिक तंत्र में पाए जाने वाले समस्त निर्जीव पदार्थ उसके अजैविक घटक कहलाते हैं ।
संरचना की दृष्टि से अजैविक घटकों को तीन भागों में बाँटा जा सकता है:
a. अकार्बनिक पदार्थ:
ये स्वपोषी घटकों जैसे हरे पौधों के पोषक तत्व हैं जिन्हें वे वातावरण से प्राप्त करते हैं । इनमें जल विभिन खनिज लवण तथा गैसें जैसे ऑक्सीजन, कार्बन डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन आदि सम्मिलित हैं ।
b. कार्बनिक पदार्थ:
इनके अंतर्गत मृत पौधों एवं जन्तुओं से प्राप्त प्रोटीन कार्बोहाइड्रेट वसा आदि सम्मिलित हैं । कवकों एवं जीवाणुओं की क्रिया से ये कार्बनिक पदार्थ अकार्बनिक पदार्थों में बदल जाते हैं तथा पौधे पुन: इनका उपयोग कर लेते हैं । इस प्रकार विभिन कार्बनिक पदार्थ पारिस्थितिक तंत्र के जैविक व अजैविक घटकों के मध्य संबंध स्थापित करते हैं ।
c. जलवायु संबंधी कारक:
वायु, ताप, प्रकाश, वर्षा, कोहरा, पाला, आर्द्रता आदि भौतिक कारक इसमें सम्मिलित हैं । पारिस्थितिक तंत्र में उपरोक्त सभी पदार्थों का निरंतर प्रवाह बने रहना आवश्यक । इस प्रकार हम ने जाना कि पर्यावरण के पारिस्थितिक तंत्र में सभी जैविक तथा अजैविक घटक एक साथ मिलकर परस्पर कार्य करते हैं ।
क्रियाकलाप:
उद्देश्य:
जलीय पारिस्थितिक तंत्र (तालाब) का मॉडल बनाना ।
सामग्री:
पानी, रेत, काँच का जार या चौड़े मुँह की बोतल (प्लास्टिक का पारदर्शी पात्र भी प्रयोग किया जा सकता है), कुछ जलीय पौधे, बाजार में उपलब्ध छोटे-छोटे खिलौने वाले जानवर जैसे: कुछ छोटी, कुछ बड़ी मछलियाँ, मेढ़क, मगरमच्छ आदि जलीय जीव ।
प्रक्रिया:
पात्र में पानी भरिए, उसकी तली में थोड़ी सी रेत डालिए । जब रेत नीचे जम जाए तब उसमें पौधे एवं जन्तु डालकर जलीय पारिस्थितिक तंत्र का मॉडल तैयार कीजिए ।
अवलोकन:
अवलोकन करें तथा जैविक, अजैविक घटकों और जलीय जीवों की परस्पर निर्भरता पर चर्चा करें ।
निष्कर्ष:
पारिस्थितिक तंत्र में जीव एक-दूसरे पर निर्भर रहते हैं । तालाब के इस पारिस्थितिक तंत्र में हरे पौधे उत्पादक हैं जो छोटी मछलियों का पोषण है अत: यहाँ छोटी मछलियाँ प्रथम उपभोक्ता है । इन छोटी मछलियों को बड़ी मछलियाँ खाती हैं । बड़ी मछलियों को मगरमच्छ खाते हैं । इस प्रकार बड़ी मछलियाँ द्वितीय उपभोक्ता एवं मगरमच्छ तृतीय उपभोक्ता होंगे ।
हरे पौधे → छोटी मछलियाँ → बड़ी मछलियाँ → मगरमच्छ
इसी प्रकार अन्य पारिस्थितिक तंत्र जैसे घास का मैदान रेगिस्तान आदि को समझा जा सकता है ।
Essay # 4. पारिस्थितिक तंत्र के कार्य (Functions of Ecosystem):
पारिस्थितिक तंत्र सदैव क्रियाशील रहता है जैसा कि पारिस्थितिक तंत्र में विभिन्न पदार्थों का प्रवाह एक चक्र के रूप में होता है ।
पारिस्थितिक तंत्र के समस्त घटक मिलकर निम्न प्रकार कार्य करते हैं:
i. हरे पौधे प्रकाश संश्लेषण द्वारा भोजन निर्माण करते हैं और उत्पादक कहलाते हैं । इन उत्पादकों से भोजन प्राप्त करने वाले जीव प्राथमिक उपभोक्ता या शाकाहारी कहलाते हैं ।
ii. प्राथमिक उपभोक्ता, द्वितीयक उपभोक्ता को पोषण देने का कार्य करते हैं ।
iii. द्वितीयक उपभोक्ताओं से तृतीयक उपभोक्ता पोषण प्राप्त करते हैं ।
iv. सभी स्तरों के जीवों (पौधे व जन्तु) के मृत शरीरों को अपघटित करने का कार्य अपघटक (जीवाणु, कवक आदि) करते हैं ।
इस प्रकार आवश्यकतानुसार सजीव वायुमण्डल, जलमण्डल, स्थलमण्डल से विभिन्न तत्वों को प्राप्त करते हैं और विभिन्न स्तरों पर पहुँचकर कुछ समय बाद तत्वों को पुन: मण्डलों में मुक्त कर देते हैं । इस चक्र में जैविक एवं अजैविक दोनों प्रकार के घटक निरन्तर परस्पर क्रियाशील रहते हैं । पारिस्थितिक तंत्र की कार्यप्रणाली को समझने के लिए उसकी खाद्य शृंखला, खाद्य जाल एवं ऊर्जा प्रवाह को समझना आवश्यक है ।
Essay # 5. पारिस्थितिक तंत्र का महत्व (Importance of Ecosystem):
जीवमण्डल में पाए जाने वाले विभिन्न पारिस्थितिक तंत्रों के घटक परस्पर संबंधित रहते हैं और जिससे पर्यावरण का संतुलन बना रहता है अत: पारिस्थितिक तंत्र का महत्व पर्यावरण संतुलन रखने में है । हम जानते हैं कि कोई भी जीवधारी अकेला जीवित नहीं रह सकता है । क्या आप सोच सकते हो कि यदि प्रकृति में उत्पादक नहीं होंगे तो क्या होगा ? सभी जीवधारी दूसरे जीवधारियों पर किसी न किसी रूप में निर्भर रहते हैं ।
पारिस्थितिक तंत्रों के कारण पर्यावरण में न किसी जीव की अधिकता हो पाती है न कमी । इस प्रकार पारिस्थितिक तंत्र में पाई जाने वाली खाद्य शृंखलाएँ एवं खाद्य जाल का पर्यावरण के स्थायित्व एवं संतुलन बनाए रखने में विशेष महत्व होता है ।
पारिस्थितिक तंत्र-मानव स्थापना एवं भूमि के वितरण पर जनसंख्या वृद्धि का प्रभाव:
भूमि एक महत्वपूर्ण प्राकृतिक संसाधन है । यह सम्पूर्ण जीव जगत का आधार है । निरंतर बढ़ती जनसंख्या के कारण प्रति व्यक्ति यह भू-भाग कम होता जा रहा है । इस भू-भाग में कृषि योग्य भूमि के साथ वन क्षेत्र की भूमि व बंजर भूमि भी सम्मिलित है ।
जनसंख्या वृद्धि के साथ-साथ भूमि कम होती जा रही है । क्योंकि बढ़ती जनसंख्या के कारण सड़कें, आवासीय कॉलोनियाँ, अस्पताल, पोस्ट ऑफिस, अन्य विभागों हेतु भवन निर्माण, एयरपोर्ट, बस अड्डे अथवा अन्य संचार कार्यों हेतु भूमि के उपभोग में वृद्धि के कारण वन्य क्षेत्र में कमी आ रही है । इससे प्रकृति में असंतुलन की स्थिति निर्मित हो रही है ।
जनसंख्या वृद्धि के कारण कृषि आपूर्ति की माँग बढ़ गई है एवं कृषि योग्य भूमि में भी कमी आ रही है । भूमि का आवंटन रासायनिक खादों तथा कीटनाशक दवाइयों के अत्यधिक उपयोग से भूमि का उपजाऊपन कम हो रहा है ।
पेड़-पौधों की लगातार कटाई से प्रति वर्ष लाखों हेक्टेयर भूमि के ऊपरी सतह नदी तथा वर्षा के जल अथवा बाढ़ से बह जाती है । इससे भी भूमि का उपजाऊपन कम होता जा रहा है । कुछ क्षेत्रों में इस कारण उपजाऊ भूमि बंजर भूमि में परिवर्तित हो गई है ।
Essay # 6. पारिस्थितिक तंत्र में ऊर्जा का प्रवाह (Effect of Energy on Ecosystem):
i. पारिस्थितिक तंत्र में प्रविष्ट होने वाली ऊर्जा का प्रमुख स्रोत सूर्य है जिसे सौर ऊर्जा कहते हैं । पारिस्थितिक तंत्र में ऊर्जा का प्रवाह केवल एक ही दिशा में होता है ।
ii. पौधे प्रकाश संश्लेषण की क्रिया द्वारा सौर ऊर्जा का रूपान्तरण रासायनिक ऊर्जा में कर देते हैं जो कि भोजन के रूप में पौधों के उत्तकों में संचित हो जाती है ।
iii. जब प्राथमिक उपभोक्ता इन पौधों को भोजन के रूप में ग्रहण करते हैं तो पौधों में संचित ऊर्जा का गमन प्राथमिक उपभोक्ताओं में हो जाता है । प्राथमिक उपभोक्ताओं द्वारा प्राप्त ऊर्जा का कुछ भाग श्वसन क्रिया द्वारा नष्ट हो जाता है शेष उनकी वृद्धि तथा विकास के काम आता है ।
iv. प्राथमिक उपभोक्ताओं से भोजन प्राप्त करने के पश्चात् उसमें संचित ऊर्जा द्वितीयक उपभोक्ताओं और द्वितीयक से तृतीयक उपभोक्ताओं में पहुँच जाती है ।
v. पौधों एवं जन्तुओं के मरने से उनमें संचित ऊर्जा का स्थानान्तरण अपघटकों (कवक, जीवाणु) में हो जाता है । इन जीवों के श्वसन से ऊर्जा का कुछ भाग वायुमण्डल में लौट जाता है । इस प्रकार कोई भी जीव भोजन द्वारा प्राप्त पूर्ण ऊर्जा को अपने में एकत्रित नहीं कर सकता है । सामान्यत: जब एक पोषण स्तर से दूसरे पोषण स्तर में ऊर्जा जाती है तो उसका अधिकांश भाग वायुमण्डल में चला जाता है । इस प्रकार प्रत्येक पोषण स्तर पर ऊर्जा का प्रवाह एक क्रम में तथा एक ही दिशा में चलता रहता है ।
ऊर्जा प्रवाह को निम्न चित्र के द्वारा समझा जा सकता है:
इस प्रकार उपरोक्त विवरण के अध्ययन से आप जान गए होंगे कि:
i. पारिस्थितिक तंत्र में ऊर्जा का प्रवाह केवल एक दिशा में होता है ।
ii. प्रत्येक पोषण स्तर पर ऊर्जा की मात्रा क्रमश: कम होती जाती है ।